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महिला सदस्यों ने संभाला बागडोर कड़ाई से पालन होगा नियम – धाकड़ समाज

●संवाददाता – डमरू कश्यप●

बस्तर■ मधोता क्षेत्र में धाकड़ समाज का बैठक शिव मंदिर प्रांगण में आहूत किया गया था जिसमें क्षेत्र के सभी समाज सदस्य सम्मिलित हुए
बैठक की अध्यक्षता जिला उपाध्यक्ष तुलाराम ठाकुर ने किया उन्होंने समाज के सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि समाज को एकजुट एवं संगठित करने समाज की अन्य गतिविधियों की जानकारी के लिए मासिक बैठक क्षेत्र में होना चाहिए।उन्होंने बताया कि धाकड़ समाज के द्वारा जो वर्तमान में नियम कानून बनाया गया है उसका कड़ाई से पालन करे ताकि धाकड़ समाज वर्तमान परिस्थितियों पर समाज हित में काम करते हुए नई ऊंचाइयों के साथ आगे बढ़ सके। यह नियम कानून धाकड़ समाज के साथ अन्य समाज के लिए एक मिसाल बन कर मील का पत्थर साबित होगा और सभी समाज इसका अनुसरण भी समाजहित में करेंगे।जब तक हम अपने क्षेत्रों में सामाजिक सुधार नहीं कर पाएंगे तब तक हम समाज का विकास नहीं कर सकते इसलिए आज से हमें यह प्रण लेना होगा और धाकड़ समाज के शादी विवाह नामकरण छटटी में कपड़ा लेन देन पर प्रतिबंध कफ़न में कमी पगड़ी रस्म में कमी कर समाज के चहुंमुखी विकास हेतु आर्थिक सहयोग करना होगा।
बैठक में महिला प्रकोष्ठ की भी नियुक्ति की गई जिसमें अध्यक्ष पदमनी ठाकुर, उपाध्यक्ष, कौशल्या ठाकुर,मंदना ठाकुर,सचिव छबीला ठाकुर, सह सचिव तेज कुमारी ठाकुर, कोषाध्यक्ष चमेली ठाकुर,सह भगवती,सदस्य सरिता ठाकुर, सरस ठाकुर पारो का चयन किया गया।

महत्वपूर्ण फैसला जो समाज ने लिया:-

1. शादी विवाह में कपड़ा बाँटना लेना-देना प्रतिबंध रहेगा।
2. छठी जन्म दिनों का रस्म पर कपड़ा लेना देना प्रतिबंध रहेगा।
3. हिंदू परंपरा के अनुसार बर्थडे हमारी संस्कृति में नहीं है यह पूर्णतः प्रतिबंध रहेगा
4.मरनी घर में गांव पारा के लोग ही कफन ढकेंगे अन्य लोग उसके बदले स्वेच्छा अनुसार राशि जमा करेंगे
5. दहेज पर प्रतिबंध रहेगा भेंट स्वरुप सामग्री घर के सदस्य दें सकते है अन्य सदस्य नगद राशि देंगे
6. प्रत्येक वर्ष जनगणना की रिपोर्ट ग्राम प्रमुख द्वारा किया जाएगा
अन्य सामाजिक गतिविधि पर चर्चा की गयी।

समाज के सर्वांगीण विकास के लिए आपसी मतभेद त्यागना होगा – क्षेत्राध्यक्ष हाकिम धाकड़

क्षेत्राध्यक्ष हाकिम धाकड़ का कहना है की समाज के विकास में योगदान देने के लिए आपसी मतभेद को त्यागना होगा।प्राचीन भारत के समाज संयुक्त परिवारों से बने थे, जो आज एकाकी हो गये हैं. व्यक्ति समाज में गौण था उसे अपने समस्त कार्य समाज द्वारा तय परिधि के भीतर ही करना होता था. मर्यादा, संस्कार तथा नियम कर्तव्यों का निर्वहन करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य था. मगर आज परिस्थतियाँ बिलकुल उलट हो गई हैं।
अब व्यक्ति समाज से अधिक स्वयं को महत्व देने लगा हैं वह समाज के कर्तव्यो के स्थान पर स्वयं या परिवार के कर्तव्यों को सर्वोपरि मानने लगा हैं।मनुष्य भले ही अपने प्रयत्नों से भौतिक साधन जुटाता है, मगर उसमें समाज का बड़ा सहयोग रहता है जिसके बिना वह उन्नति नहीं कर सकता हैं, व्यक्ति जो कुछ पाता है समाज से ही पाता हैं।

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